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लोककथा संग्रह

लोककथ़ाएँ


बूढ़ा-बूढ़ी चाँद पर: मणिपुरी लोक-कथा

प्राचीन काल की बात है। किसी गाँव में एक बूढ़ा और बुढ़िया दंपति रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। बूढ़ा दिन-भर खेत में काम करता था और बुढ़िया घर का काम करती थी। बूढ़ा-बूढ़ी दोनों गुरु शिदब की बहुत आराधना करते थे। वे अपना खाली समय पूजा-पाठ में बिताते थे। इस कारण स्वर्ग के देवता उन पर बहुत प्रसन्‍न थे ।

एक दिन बुढ़िया एक लंबे मूसल से धान कूट रही थी। तभी स्वर्ग के देवता उनसे मिलने आए। वे आकाश से उतरकर बुढ़िया के घर के ऊपर पहुँच गए लेकिन मूसल के कारण नीचे नहीं उतर सके । वे ऊपर की ओर जाने लगे, तभी खेत से लौटते हुए बूढ़े ने उन्हें देख लिया। उसने देवताओं को आवाज दी, किंतु उन्होंने नहीं सुना और चले गए। बूढ़ा बहुत दुखी हुआ। वह बुढ़िया से बोला, देवता लोग हमसे मिलने आए थे। वे नीचे न उतर पाने के कारण वापस चले गए। अब चलो हम लोग उनसे मिल कर आएँ।”

बुढ़िया तैयार हो गई। दोनों अपनी-अपनी पीठ पर एक-एक गठरी में सामान लेकर स्वर्ग की ओर चल पड़े । जब वे स्वर्गलोक पहुँचे तो वहाँ तारे जगमगा रहे थे। बूढ़े-बुढ़िया ने सोचा कि देवता लोग हमसे नाराज हो गए हैं इसीलिए उनकी आँखें क्रोध से चमक रही हैं। बूढ़े ने बुढ़िया से कहा, “अभी देवता लोग हमसे नाराज हैं। चलो, एक-दो दिन के लिए चाँद पर चलें । तब तक इनका क्रोध शांत हो जाएगा । फिर भेंट करेंगे।”

बुढ़ा और बुढ़िया चाँद पर चले गए । उन्हें वहाँ का दृश्य बहुत अच्छा लगा। इस कारण वे देवताओं के पास जाना भूल गए। उन्होंने एक कुटिया बनाई और उसी में रहने लगे। बूढ़े ने धान के लिए खेत भी बना लिए। इस प्रकार उनके दिन बीतने लगे।

बूढ़े-बूढ़ी की झोपड़ी के पास गूलर का एक पेड़ था। एक दिन बूढ़ी ने उस पेड़ से कहा, “गूलर, गूलर, थोड़े-से फल गिराओ।”

गूलर ने फल गिरा दिए। बूढ़े-बूढ़ी दोनों ने फल खाए। गूलर का फल खाते ही उन्हें दीर्घायु प्राप्त हो गई । तब से बूढ़ा-बूढ़ी चाँद पर ही रह गए। वे आज तक भी वहीं हैं। धरती से उनकी छाया दिखाई पड़ती है।

(देवराज)

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साभारः लोककथाओं से

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